Friday, March 16, 2012

आर्थिक गुलामी से सचेत रहने की है जरूरत–विभूति नारायण राय

हिंदी विवि में डॉ.आंबेडकर और भारतीय संविधान : वर्तमान में प्रासंगिकता पर हुआ वैचारिक विमर्श

वर्धा 10 दिसम्‍बर, 2011; आजादी आंदोलन के समय एक ऐसा नेतृत्‍व विकसित हो रहा था जो काफी अर्थों में आधुनिक व देशभक्‍त था। डॉ.बाबासाहेब आंबेडकर कहते रहे कि राजनीतिक आजादी का कोई औचित्‍य नहीं जबत‍क कि हमें सामाजिक व आर्थिक आजादी न मिले। महात्‍मा फुले, डॉ.आंबेडकर को आशंका थी कि अंग्रेजों के जाने के बाद भी हम गुलामी में ही जियेंगे। असमानता व जातिवाद का मसला आज भी बरकरार है। हाल ही में एक रिपोर्ट आयी कि असमानता के मामले में भारत का स्‍थान प्रथम हो गया है। दुनिया के कई सारे मुल्‍क, जहां कि ह्यूमेन इंडीकेटर के ग्राफ हमसे कम हैं, दुर्भाग्‍य है कि वह भी असमानता के मामले में हमसे पीछे है। डॉ.आंबेडकर के चिंतन में समानता, बंधुत्‍व, अखंडता आदि शामिल हैं। कुछ ताकतें संविधान को गैर-जरूरी मानती हैं। दुनिया के सारे ग्रंथों से यह हमें अधिक पवित्र लगता है, क्‍योंकि इसमें समता, शोषणविहीन समाज रचना व मानवीय मूल्‍यों की बात समाहित है। आज हमें आर्थिक गुलामी से सचेत रहने की जरूरत है।

उक्‍त उदबोधन महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय, वर्धा के कुलपति ने व्‍यक्‍त किए। वे डॉ.बाबासाहेब आंबेडकर की 55 वें महापरिनिर्वाण दिवस के अवसर पर डॉ.बाबासाहेब आंबेडकर और भारतीय संविधान : वर्तमान में प्रासंगिकता विषय पर आयोजित संगोष्‍ठी की अध्‍यक्षता करते हुए बोल रहे थे। हबीब तनवीर सभागार में आयोजित कार्यक्रम के दौरान साहित्‍य विद्यापीठ के प्रो.के.के.सिंह, डॉ. आंबेडकर अध्‍ययन केंद्र के कार्यकारी निदेशक डॉ.एम.एल.कासारे बतौर वक्‍ता के रूप में मंचस्‍थ थे।

डॉ.एम.एल.कासारे बोले, बाबासाहेब ने अपने ज्ञान का उपयोग देश के नवनिर्माण में लगाया। उनका मानना था कि देश की सामाजिक व्‍यवस्‍था में जाति व्‍यवस्‍था ने भयंकर नुकसान पहुंचाया है। जाति व्‍यवस्‍था के कारण ही हम गुलाम हुए हैं। उनके विचारों को दुनिया मान रही है। अभी हाल ही में ऑक्‍सफोर्ड विवि ने एक पर्चा प्रकाशित किया है जिसमें पिछले दस हजार वर्षों में मानव समाज की सेवा करने वालों के सौ लोगों की सूची तैयार की है जिसमें भगवान बुद्ध, भगवान महावीर, सम्राट अशोक के बाद डॉ. आंबेडकर को भी शामिल किया गया है। डॉ. कासारे ने कहा कि मणि भवन में बाबासाहेब ने गांधीजी से पूछा कि बापू आप किस देश की बात कह रहे हैं, जिस देश में हमें कुत्‍ते और बिल्‍ली से भी नीच समझा जाता है। यह असमानता आज भी बदस्‍तूर जारी है जिसकी खात्‍मा के लिए हमें निरंतर प्रयास करना चाहिए।

कार्यक्रम के दौरान प्रो.के.के.सिंह ने कहा कि बाबासाहेब ऋग्‍वेद से लेकर तमाम ग्रंथों को पढ़ने के बाद भारत की जाति व्‍यवस्‍था की प‍हचान करते हैं। साम्राज्‍यवादी दौर में उन्‍होंने बताया कि भारत में जाति व्‍यवस्‍था का संबंध किसी नस्‍ल से नहीं है। दैवीय उत्‍पति भी नहीं है। उन्‍होंने नई अवधारणा दी कि यह अनुकरण पर आधारित है। डॉ. बाबासाहेब की रचना ऐल्‍हीलेशन ऑफ कास्‍ट को कम्‍यूनिस्‍ट घोषणापत्र माना जाना चाहिए, का जिक्र करते हुए प्रो.सिंह ने बताया कि इसमें बाबासाहेब ने भारत की जाति व्‍यवस्‍था का जिक्र किया है। उन्‍होंने इस देश के जाति व्‍यवस्‍था की अमानुषिकता को देखा। इतिहासकार मानते हैं कि जाति व्‍यवस्‍था समाज की लौह ढांचा है। गौतम बुद्ध सबसे पहले इस व्‍यवस्‍था पर करारी चोट करते हैं। बाबासाहेब जाति व्‍यवस्‍था को तोड़ने के लिए बुद्ध की ओर जाते हैं। उनका मानना था कि इस देश में मजिस्‍ट्रेट से ज्‍यादा डर पूरोहितों से है। कबीर भी तो पूरोहित और मौलवियों पर चोट करते हैं। क्‍योंकि ये सुलाने में विश्‍वास करते हैं। बड़े लोग जनता को जगाने में विश्‍वास करते हैं। बाबासाहेब ने कहा था कि जाति व्‍यवस्‍था हमारी मन:स्थिति बन गई और इसे पुरोहितों और मौलवियों ने मन में बिठा दिया है। क्‍योंकि इसे शास्‍त्र का आधार प्राप्‍त है। इसलिए बाबासाहेब प्रतीकात्‍मक रूप में मनुस्‍मृति का दहन करते हैं। प्रो. सिंह ने कहा कि जाति व्‍यवस्‍था तबतक बनी रहेगी जबतक आप शास्‍त्रों से संचालित होते रहेंगे। भारत का हिंदू समाज बहुमंजिली मिनार के रूप में दिखती है जिसमें प्रवेश करने के लिए न खिड़की है, न दरवाजा और न ही सीढ़ी। ऊंच-नीच बरकरार है। आज जैसे ही जाति व्‍यवस्‍था की बात की जाती है, छदम चेतना आने लगती है कि हम तो ऊपर हैं, हमारा नुकसान होगा, विरोध शुरू हो जाती है। प्रेमचंद के कर्मभूमि में वर्णित सामाजिक सुधार का जिक्र करते हुए उन्‍होंने कहा कि तुम क्रांति की बात करो पूरा समाज सुनेगा पर जैसे ही तुम व्‍यवहार की धरातल पर बात करोगे विरोध शुरू हो जाएगा। हम सिद्धांत की बातें करते हैं पर व्‍यवहार में रूढि़वादी ही रहते हैं। आज जरूरत है कि बाबासाहेब के चिंतन को व्‍यवहार के धरातल पर उतारें।

दूरस्‍थ शिक्षा के संदीप सपकाले ने कहा कि समतामूलक समाज निर्माण के लिए इस दिवस को चिंतन दिवस के रूप में मनाना चाहिए। डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर की प्रतिमा पर माल्‍यार्पण कर कार्यक्रम की शुरूआत हुई। डॉ. भदन्‍त आनन्‍द कौसल्‍यायन बौद्ध अध्‍ययन केंद्र के सहायक प्रोफेसर डॉ. सुरजीत कुमार सिंह ने मंच का संचालन किया। बौद्ध अध्‍ययन केंद्र के रिसर्च एसोसिएट ज्‍येतिष पायें ने स्‍वागत वक्‍तव्‍य दिया। इस अवसर पर विवि के शैक्षणिक, गैर-शैक्षणिक कर्मी, शोधार्थी व विद्यार्थी बड़ी संख्‍या में उपस्थित थे।

बांग्लादेश में दलित जीवन

बांग्लादेश में दलित जीवन

लेखक : नइमुल करीम , अनुवादक : आनन्द पाण्डेय

कल्पना कीजिये एक ऐसी जिंदगी की जिसमें किसी स्त्री-पुरुष को अपनी पहचान हर दिन समाज से खारिज हो जाने से बचने के लिए छुपानी पड़ती हो, जिसमें व्यक्ति को इंसान द्वारा निर्मित अतार्किक व्यवस्था की वजह से हर स्तर पर दण्डित होना पड़ता हो. इस तरह की नारकीय जिंदगी के लिए किसी दलित परिवार में पैदा हो जाना ही काफी है. सबसे खतरनाक तो यह है कि सरकार इस अमानवीय प्रथा की ओर आँखें बंद किये है.

बांग्लादेश में दलितों की आबादी लगभग १ करोड़ है. बांग्लादेश दलित परिषद् के अनुसार यह आबादी भारतीय उप महाद्वीप का सबसे उपेक्षित समुदाय है. बांग्लादेश दलित परिषद् के संयोजक विकास कुमार दास कहते हैं , “नेपाल और भारत जैसे देशों में ऐसे कानून हैं जो दलितों की भेदभाव से रक्षा करते हैं. ऐसे देशों में दलित उत्पीड़न के खिलाफ न्यायालय का दरवाजा खटखटाया जा सकता है. लेकिन, ४० सालों के बाद भी यहाँ कोई नियम नहीं है जो हमारी रक्षा कर सके. आज भी हमें अछूत माना जाता है.”

अनुसूचित जाति के नाम से भी जाना जाने वाला दलित समुदाय हिन्दू जाति-व्यवस्था की सबसे निचली जाति है. सदियों से यह जाति सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और अन्य विविध आधारों पर भेदभाव का शिकार रही है. जिसके फलस्वरूप सामान्य जनता से प्रतियोगिता करने के लिए इन्हें संघर्ष करना पड़ता है. इन्हें आज भी गटर सफाई, जूता पॉलिश, सफाई जैसे अपने परम्परागत पेशे में ही फंसे रहना पड़ता है. नाम-शूद्र से लेकर ऋषि तक कई दलित उपजातियां पूरे देश में पायी जाती हैं. फ़िर भी उन्हें भेदभाव से बचाने के लिए कोई वैधानिक व्यवस्था नहीं की गयी है. यद्यपि कि संविधान जाति आधारित भेदभाव को निषिद्ध ठहराता है फ़िर भी दलितों का मानना है कि उन्हें सुरक्षात्मक हस्तक्षेप की आवश्यकता है. बांग्लादेश दलित परिषद् के सदस्य मिलन दास कहते हैं, “हम ऐसा कानून चाहते हैं जो खासतौर पर दलितों के उत्पीड़न को निषिद्ध करे. समाज में बेहतर जगह पाने के लिए हमारे लिए एकमात्र यही रास्ता है.”

अपनी निराशाजनक कहानी बयां करते हुए कुमार दास कहते हैं कि अपने परम्परागत पेशे छोड़कर मनमाफिक रोजगार करना और समाज की मुख्यधारा में जगह बनाना बहुत मुश्किल है. वह कहते हैं , “ छः महीने मेडिकल प्रैक्टिस के बाद मैंने दवा की दुकान खोलनी चाही. जब मैंने अपने सहकर्मियों से इस बात की चर्चा की तो उन लोगों ने सलाह दी कि यह घाटे का सौदा होगा क्योंकि एक दलित की दुकान से कोई भी दवा नहीं खरीदेगा.” दास ने उसी दिन अपनी नौकर छोड़ दी और फ़िर कभी लौट कर नहीं गए. उन्होंने बांग्लादेश दलित परिषद् के लिए काम शुरू कर दिया. बांग्लादेश दलित परिषद् दलितों की जिंदगी को बदलने की कोशिश करने वाले कुछ संगठनों में से एक है. दास कहते हैं, “नौकरियों की बात भूल जाइये, हमें तो साक्षात्कार के लिए भी नहीं बुलाया जाता क्योंकि हमारे नाम से ही हमारी पहचान का पता चल जाता है.” नौकरियों में आरक्षण के महत्व पर जोर देते हुए दलित परिषद् कहती है कि सार्वजानिक क्षेत्र में कड़ी प्रतिस्पर्द्धा के कारण दलितों के लिए नौकरी पाना टेढ़ी खीर हो गया है. कुमार दास कहते हैं, “पूरे जीवन हम शिक्षा, और अन्य सामाजिक कारकों में पीछे रहे इसलिए सामान्य जनता के साथ प्रतियोगिता करना हमारे लिए संभव नहीं है.”

पिछले कुछ सालों में बांग्लादेश हरिजन परिषद् और बांग्लादेश दलित परिषद् जैसे संगठनों के उभार हुए हैं. जिन्होंने दलितों में जागरूकता और संघर्ष की भावना का प्रसार किया है. विभिन्न संगोष्ठियों के माध्यम से वे सिविल सोसाइटी का समर्थन हासिल करने में कामयाब हुए हैं. यद्यपि कि कुछ प्रगति हुई है लेकिन समुदाय के नेताओं का मानना है कि और अधिक लाभ उठाने के लिए दलितों का संसद में प्रतिनिधित्व जरूरी है. कुमार दास कहते हैं , “किसी भी राजनीतिक दल में दलितों के प्रतिनिधि नहीं हैं. उपजिला से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक कोई भी दलित नहीं है. कोई भी हमारे बारे में नहीं सोचता है. इसलिए राजनीतिक रूप से हम बहिष्कृत हैं और यह एक बड़ी समस्या है.” दास और आगे कहते हैं कि अवामी लीग समेत कई दलों ने २००९ के चुनावी घोषणा-पत्र में दलितों के लिए कई वादे किये थे लेकिन आज तक सरकार ने कुछ भी नहीं किया है. दलित परिषद् के सदस्य राजनीतिक दलों को उन्हें महज वोट बैंक समझने का दोषी मानते हैं. एक हालिया सम्मलेन में दलित परिषद् के एक सदस्य ने कहा कि चुनाव परिणाम जो भी हों, विजयी दल अंत में दलितों की निंदा ही करता है. बांग्लादेश दलित परिषद् के सदस्य अशोक दास कहते हैं, “ सत्तारूढ़ दल ने हमारे लिए कभी भी कुछ नहीं किया है. हमारे संगठनों (बीडीपी-बीएचपी) को धन के लिए मानुषेर जन जैसे गैर सरकारी संगठनों पर निर्भर रहना पड़ता है.

चुनाव से जुड़ी एक घटना का जिक्र करते हुए कुमार दास कहते हैं, “हाल में मेरे एक रिश्तेदार उपजिला चुनाव में खड़े हुए. नामांकन के बाद हम लोगों ने उनका समर्थन करना शुरू किया. पूरा सवर्ण समाज इसके खिलाफ था. उन्होंने घिनौने नारे लगाये और हमारे समुदायों को अपमानित किया. आखिरकार हमारे प्रत्याशी को चुनाव से अलग होना पड़ा.”

यद्यपि कि यह एक कठिन काम है फ़िर भी बीडीपी और बीएचपी का मानना है कि सरकार अंततः हमारी मांगों को मानेगी इसलिए इस दिशा में इन संगठनों ने कदम उठाना शुरू कर दिया है. उदाहरण के लिए राष्ट्रीय दलित आयोग के गठन की योजना इनमें से एक है. अशोक दास कहते हैं, “हमारा लक्ष्य है एक दलित आयोग का गठन जो हमें मुख्यधारा से जोड़ने और अन्य कई जरूरतों को पूरा करने में हमारी मदद करेगा.” वह कहते हैं, “अभी हमारा लक्ष्य है संगठित शक्ति होना.”

बीडीपी के अनुसार दलित महिलाओं के विरूद्ध अत्याचार एक अन्य प्रमुख समस्या है जिस पर समुचित ध्यान नहीं दिया गया है. अशोक दास कहते हैं कि दलित महिलाएं दोहरे दमन का शिकार हैं. पहले तो औरत होने के नाते और दूसरे दलित होने के नाते. कुमार दास कहते हैं, “हमारे समुदाय की महिलाओं के लिए सवर्ण लोगों ने ‘मुचीर बो, शोबार शुन्दोरी भाभी’ जैसी कहावतें चला रखी हैं, जिसका अर्थ होता है कि दलित स्त्रियों को छेड़ने में कुछ भी बुरा नहीं है.”

अनारक्षण की नीति ने शिक्षा के क्षेत्र को भी प्रभावित किया हुआ है. दलित छात्रों को इसकी वजह से संस्थाओं में प्रवेश के लिए भटकना पड़ता है. बीडीपी से सम्बद्ध एक शिक्षाशास्त्री दावा करते हैं, “एससी छात्र हाई स्कूल में कम नम्बरों की वजह से विश्वविद्यालयों द्वारा खारिज कर दिए जाते हैं. सुविधाहीनता में ये इतने ही नम्बर ला सकते हैं.” इसके आलावा जिन छात्रों का सरकारी विश्वविद्यालयों में प्रवेश हो भी जाता है वे अपनी पहचान छुपाते हैं ताकि किसी प्रकार की प्रतिक्रिया से बचे रह सकें.” सत्कारी राजकीय महाविद्यालय के छात्र बशुदेब दास बाबुल कहते हैं, “दलित छात्र अपनी पहचान नहीं उजागर करते हैं क्योंकि उन्हें अलग मेस में खाने या अलग होस्टल में रहने के लिए मजबूर किया जा सकता है.” वे आगे कहते हैं कि परिसरों में उन्हें समान अवसर नहीं मुहैया कराये जाते.

बाबुल उदाहरण के लिए, अपने बारे में बताते हैं, “मैं बांग्लादेश छात्र लीग का सक्रिय सदस्य हुआ करता था और प्रायः राजनीतिक भाषण भी देता था. लेकिन जब लोगों को पता चला कि मैं ऋषि हूँ, तो उन लोगों ने मेरी उपेक्षा करनी और मुझे खारिज करना शुरू कर दिया.” वह आगे कहते हैं कि मेरी जाति का पता चल जाने के बाद लोगों ने मुझे महाविद्यालय में महामंत्री बनने से रोक दिया. बहुत से अन्य दलित छात्रों की तरह बाबुल को भी जाति की वजह से नौकरियों के लिए मना कर दिया जाता था. फ़िलहाल वे बीडीपी को सहायता देने वाली परित्राण नामक गैर सरकारी संस्था में काम कर रहे हैं. बीडीपी के अन्य सदस्यों की तरह बाबुल भी मानते हैं कि सार्थक बदलाव के लिए दलितों को राजनीति में मौका चाहिए.

समान अवसर के तर्क के आधार पर विरोधी दलितों के लिए आरक्षण की नीति का विरोध करेंगे लेकिन उन्हें उस दर्द और अपमान को समझने की कोशिश करनी चाहिये जिससे वे सदियों से गुजर रहे हैं. यह असंभव है कि असमानता की जमीन पर खड़े होकर वे समाज में जगह बना पाएंगे. उम्मीद है, सत्ता में बैठे लोग आरक्षण के माध्यम से भारत में दलितों की उल्लेखनीय प्रगति से प्रेरित होंगे और देश के लगभग १ करोड़ दलितों को कुछ इसी तरह के कदम उठाकर देशवासी होने का अहसास दे पाएंगे.

नइमुल करीम बांग्लादेश के अग्रणी मीडिया समूह ‘द डेली स्टार’ के फीचर लेखक हैं. आनन्द पाण्डेय,पी.एचडी, राजनीतिक कार्यकर्त्ता, अनुवादक और लेखक हैं. यह लेख उक्त समूह की मासिक पत्रिका ‘फोरम’ के फरवरी अंक में छपा था. वहीं से लेकर इसका अनुवाद किया गया है.

Sunday, March 11, 2012

Dr. Surjeet Kumar Singh




Dr. Surjeet Kumar Singh in Keljhar.





Dr. Surjeet Kumar Singh in Keljhar.





Dr. Surjeet Kumar Singh in Keljhar.





Dr. Surjeet Kumar Singh

Dr. Surjeet Kumar Singh in Nagpur.
Dr. Surjeet Kumar Singh in Nagpur.
Dr. Surjeet Kumar Singh in Keljhar.
Dr. Surjeet Kumar Singh in Keljhar.
Dr. Surjeet Kumar Singh in Keljhar.

Dr. Surjeet Kumar Singh

Dr. Surjeet Kumar Singh with Office.
Dr. Surjeet Kumar Singh with Office.
Dr. Surjeet Kumar Singh with Office.

Dr. Surjeet Kumar Singh





Dr. Surjeet Kumar Singh


On 06 December,2011 Dr. Surjeet Kumar Singh paying Homage to Baba Saheb Dr. Bhimrao Ambedkar Ji @ Ambedkar Chowk, Wardha.


Dr. Surjeet Kumar Singh with his friends Dr. Sunil Kumar Suman, Dr. Vilaswani, Dr. Prafull Moon And Ramesh Siddharth. with Dr. Devanand Kumbhare.

Dr. Surjeet Kumar Singh




Dr. Surjeet Kumar Singh in Ambedkar Students Forum, MGIHU, Wardha.
@26-01-2012.

Dr. Surjeet Kumar Singh

Dr. Surjeet Kumar Singh in Ambedkar Students Forum, MGIHU, Wardha. @26-01-2012.
Dr. Surjeet Kumar Singh, Dr. Sunil Kumar Suman, Dr. Prafull Moon, Dr. Devanand Kumbhare, Miss. Kiran Kumbhare in Ambedkar Students Forum, MGIHU, Wardha. @26-01-2012.


Dr. Surjeet Kumar Singh

Dr. Surjeet Kumar Singh with his Mr. Gillu.
Dr.Surjeet Kumar Singh presented a paper in ISBS,Gangtok.
Dr. Surjeet Kumar Singh with Monks.
Dr. Surjeet Kumar Singh with Monks.
Dr. Surjeet Kumar Singh with Monks and his friends(Gangtok).