हिंदी विवि में ‘डॉ.आंबेडकर और भारतीय संविधान : वर्तमान में प्रासंगिकता’ पर हुआ वैचारिक विमर्श
वर्धा 10 दिसम्बर, 2011; आजादी आंदोलन के समय एक ऐसा नेतृत्व विकसित हो रहा था जो काफी अर्थों में आधुनिक व देशभक्त था। डॉ.बाबासाहेब आंबेडकर कहते रहे कि राजनीतिक आजादी का कोई औचित्य नहीं जबतक कि हमें सामाजिक व आर्थिक आजादी न मिले। महात्मा फुले, डॉ.आंबेडकर को आशंका थी कि अंग्रेजों के जाने के बाद भी हम गुलामी में ही जियेंगे। असमानता व जातिवाद का मसला आज भी बरकरार है। हाल ही में एक रिपोर्ट आयी कि असमानता के मामले में भारत का स्थान प्रथम हो गया है। दुनिया के कई सारे मुल्क, जहां कि ह्यूमेन इंडीकेटर के ग्राफ हमसे कम हैं, दुर्भाग्य है कि वह भी असमानता के मामले में हमसे पीछे है। डॉ.आंबेडकर के चिंतन में समानता, बंधुत्व, अखंडता आदि शामिल हैं। कुछ ताकतें संविधान को गैर-जरूरी मानती हैं। दुनिया के सारे ग्रंथों से यह हमें अधिक पवित्र लगता है, क्योंकि इसमें समता, शोषणविहीन समाज रचना व मानवीय मूल्यों की बात समाहित है। आज हमें आर्थिक गुलामी से सचेत रहने की जरूरत है।
उक्त उदबोधन महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के कुलपति ने व्यक्त किए। वे डॉ.बाबासाहेब आंबेडकर की 55 वें महापरिनिर्वाण दिवस के अवसर पर ‘डॉ.बाबासाहेब आंबेडकर और भारतीय संविधान : वर्तमान में प्रासंगिकता’ विषय पर आयोजित संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए बोल रहे थे। हबीब तनवीर सभागार में आयोजित कार्यक्रम के दौरान साहित्य विद्यापीठ के प्रो.के.के.सिंह, डॉ. आंबेडकर अध्ययन केंद्र के कार्यकारी निदेशक डॉ.एम.एल.कासारे बतौर वक्ता के रूप में मंचस्थ थे।
डॉ.एम.एल.कासारे बोले, बाबासाहेब ने अपने ज्ञान का उपयोग देश के नवनिर्माण में लगाया। उनका मानना था कि देश की सामाजिक व्यवस्था में जाति व्यवस्था ने भयंकर नुकसान पहुंचाया है। जाति व्यवस्था के कारण ही हम गुलाम हुए हैं। उनके विचारों को दुनिया मान रही है। अभी हाल ही में ऑक्सफोर्ड विवि ने एक पर्चा प्रकाशित किया है जिसमें पिछले दस हजार वर्षों में मानव समाज की सेवा करने वालों के सौ लोगों की सूची तैयार की है जिसमें भगवान बुद्ध, भगवान महावीर, सम्राट अशोक के बाद डॉ. आंबेडकर को भी शामिल किया गया है। डॉ. कासारे ने कहा कि मणि भवन में बाबासाहेब ने गांधीजी से पूछा कि बापू आप किस देश की बात कह रहे हैं, जिस देश में हमें कुत्ते और बिल्ली से भी नीच समझा जाता है। यह असमानता आज भी बदस्तूर जारी है जिसकी खात्मा के लिए हमें निरंतर प्रयास करना चाहिए।
कार्यक्रम के दौरान प्रो.के.के.सिंह ने कहा कि बाबासाहेब ऋग्वेद से लेकर तमाम ग्रंथों को पढ़ने के बाद भारत की जाति व्यवस्था की पहचान करते हैं। साम्राज्यवादी दौर में उन्होंने बताया कि भारत में जाति व्यवस्था का संबंध किसी नस्ल से नहीं है। दैवीय उत्पति भी नहीं है। उन्होंने नई अवधारणा दी कि यह अनुकरण पर आधारित है। डॉ. बाबासाहेब की रचना ‘ऐल्हीलेशन ऑफ कास्ट’ को कम्यूनिस्ट घोषणापत्र माना जाना चाहिए, का जिक्र करते हुए प्रो.सिंह ने बताया कि इसमें बाबासाहेब ने भारत की जाति व्यवस्था का जिक्र किया है। उन्होंने इस देश के जाति व्यवस्था की अमानुषिकता को देखा। इतिहासकार मानते हैं कि जाति व्यवस्था समाज की लौह ढांचा है। गौतम बुद्ध सबसे पहले इस व्यवस्था पर करारी चोट करते हैं। बाबासाहेब जाति व्यवस्था को तोड़ने के लिए बुद्ध की ओर जाते हैं। उनका मानना था कि इस देश में मजिस्ट्रेट से ज्यादा डर पूरोहितों से है। कबीर भी तो पूरोहित और मौलवियों पर चोट करते हैं। क्योंकि ये सुलाने में विश्वास करते हैं। बड़े लोग जनता को जगाने में विश्वास करते हैं। बाबासाहेब ने कहा था कि जाति व्यवस्था हमारी मन:स्थिति बन गई और इसे पुरोहितों और मौलवियों ने मन में बिठा दिया है। क्योंकि इसे शास्त्र का आधार प्राप्त है। इसलिए बाबासाहेब प्रतीकात्मक रूप में मनुस्मृति का दहन करते हैं। प्रो. सिंह ने कहा कि जाति व्यवस्था तबतक बनी रहेगी जबतक आप शास्त्रों से संचालित होते रहेंगे। भारत का हिंदू समाज बहुमंजिली मिनार के रूप में दिखती है जिसमें प्रवेश करने के लिए न खिड़की है, न दरवाजा और न ही सीढ़ी। ऊंच-नीच बरकरार है। आज जैसे ही जाति व्यवस्था की बात की जाती है, छदम चेतना आने लगती है कि हम तो ऊपर हैं, हमारा नुकसान होगा, विरोध शुरू हो जाती है। प्रेमचंद के कर्मभूमि में वर्णित सामाजिक सुधार का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि तुम क्रांति की बात करो पूरा समाज सुनेगा पर जैसे ही तुम व्यवहार की धरातल पर बात करोगे विरोध शुरू हो जाएगा। हम सिद्धांत की बातें करते हैं पर व्यवहार में रूढि़वादी ही रहते हैं। आज जरूरत है कि बाबासाहेब के चिंतन को व्यवहार के धरातल पर उतारें।
दूरस्थ शिक्षा के संदीप सपकाले ने कहा कि समतामूलक समाज निर्माण के लिए इस दिवस को चिंतन दिवस के रूप में मनाना चाहिए। डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर कार्यक्रम की शुरूआत हुई। डॉ. भदन्त आनन्द कौसल्यायन बौद्ध अध्ययन केंद्र के सहायक प्रोफेसर डॉ. सुरजीत कुमार सिंह ने मंच का संचालन किया। बौद्ध अध्ययन केंद्र के रिसर्च एसोसिएट ज्येतिष पायें ने स्वागत वक्तव्य दिया। इस अवसर पर विवि के शैक्षणिक, गैर-शैक्षणिक कर्मी, शोधार्थी व विद्यार्थी बड़ी संख्या में उपस्थित थे।