हम आप सभी मित्रों के माध्ययम से भारत के महामहिम राष्ट्रपति का ध्यान
इस तरफ दिला चाहते हैं कि संघ
लोक सेवा आयोग की सिविल सेवा परीक्षा में पालि भाषा काफी लम्बे समय से 2012 तक
रही, लेकिन आयोग की 05.03.2013 की अधिसूचना के अनुसार पालि को वर्ष 2013 की
परीक्षा से हटा दिया गया है। आयोग द्वारा सिविल सेवा परीक्षा से पालि भाषा के विषय
को हटाया जाना भारतीय संविधन द्वारा प्रदत्त समानता के अधिकार एवं धार्मिक
स्वतन्त्रता के अधिकारों का हनन करना है। पालि भाषा के विषय को लेकर सिविल सेवा की
मुख्य परीक्षा देने वाले प्रतिभागियों की संख्या हजारों में है, जिसमें
से अधिकतर प्रतिभागी सफलता को प्राप्त करते हैं। पालि प्राचीनकाल से ही भारत की
जनभाषा है और भारत पालि भाषा का मूल उद्गम स्थल है। वर्तमान समय में पालि का लगभग 55 विश्वविद्यालयों
में का अध्ययन-अध्यापन एवं शोध हो रहा है। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा
प्रतिवर्ष साल में दो बार यू.जी.सी. नेट/जे.आर.एफ. की परीक्षा पालि भाषा और बौद्ध अध्ययन
में अलग-अलग आयोजित की जाती है। सभी लगभग 55 विश्वविद्यालयों और उनसे सम्बद्ध कालेजों में
स्नातक, एम.ए., एम.फिल., पी-एच.डी.
की डिग्री दी जाती है। इसके साथ ही सर्टीफिकेट कोर्स, डिप्लोमा कोर्स एवं
पालि आचार्य की भी उपाधि दी जाती है।
पालि
भाषा भारत के सांस्कृतिक सम्बन्धों के मेलजोल बढ़ाने की भी एक महत्वपूर्ण भाषा है।
पालि भाषा हमारे भारत की विदेशी नीति का आधार भी है। यह सार्क देशों और दक्षिणी
एशियाई देशों के साथ हमारी विदेश नीतियों को प्रभावित करती है। पालि भाषा के बिना
प्राचीन भारतीय इतिहास को जानना कठिन ही नहीं,
अपितु असम्भव भी है, पालि के बिना प्राचीन
भारतीय इतिहास की व्याख्या नहीं कर सकते। क्योंकि पालि भाषा भारत की प्राच्य भाषा है।
वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा बोर्ड, बिहार
माध्यमिक शिक्षा बोर्ड, एवं महाराष्ट्र माध्यमिक शिक्षा बोर्ड में भी
पालि की पढ़ाई हाईस्कूल एवं
इण्टरमीडिएट कक्षाओं में की जाती है।
उपर्युक्त
तर्क से स्पष्ट है कि पालि भाषा को सिविल सेवा से हटाने से अल्पसंख्यक बौद्ध समाज
बहुत दुःखी एवं आहत हुआ है। साथ ही उनके आर्थिक, व्यक्तिगत, शैक्षणिक, सामाजिक, धार्मिक
व सांस्कृतिक व राजनीतिक विकास को अवरुद्ध कर दिया गया है। इससे न केवल बौद्ध समाज
के हितों पर कुठाराघात हुआ है, अपितु सिविल सेवा हेतु प्रयासरत् सभी समुदायों
के प्रतिभागियों का भविष्य भी अन्धकारमय हो गया है। इसके अलावा प्राचीन भारतीय धर्म-दर्शन, संस्कृति एवं
इतिहास के इच्छुक व्यक्तियों के लिए भी अहितकर है। पालि भाषा को सिविल सेवा से हटाकर
भारत के महापुरुष भगवान बुद्ध के उपदेशों का अपमान भी किया है।
पालि
वह भाषा है, जिसके कारण भारत को दुनिया में जाना जाता है और जो सम्पूर्ण विश्व को शान्ति, दया, करुणा और
मैत्री का उपदेश देती है। अतः उपरोक्त बिन्दुओं को ध्यान में रखते हुए तथा पालि के
उचित संरक्षण व संवर्धन हेतु आप सभी
के माध्ययम से विनम्र निवेदन है कि पालि भाषा व साहित्य को पुनः सिविल सेवा के
पाठ्यक्रम में सम्मिलित करने हेतु उचित कार्यवाही को करने की कृपा करें।
सधन्यवाद.
भवदीय
(डॉ. सुरजीत कुमार सिंह)
महासचिव
पालि भाषा एवं साहित्य अनुसंधान
परिषद्
सी-२९,छात्रा मार्ग, दिल्ली
विश्वविद्यालय,दिल्ली.
Mob.926055256,Email:surjeetdu@gmail.com