Friday, January 11, 2019

डॉ. भदंत आनंद कौसल्यायन व्याख्यानमाला (पंचम) : 2019 का आयोजन

पालि भाषा एवं हिंदी का प्रचार-प्रसार ही कौसल्यायन जी के जीवन का उद्देश्य – प्रो. एम. एल. कासारे

महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के डॉ. भदंत आनंद कौसल्यायन बौद्ध अध्ययन केंद्र के द्वारा डॉ. भदंत आनंद कौसल्यायन के 114 वें जन्मदिवस के अवसर पर प्रति वर्ष की भांति विशेष कार्यक्रम पाँचवाँ डॉ. भदंत आनंद कौसल्यायन व्याख्यान: 2019 का आयोजन किया गया।  
कार्यक्रम की शुरुआत बुद्ध वन्दना से हुई जिसमें भिक्षु राकेशानन्द जी के नेतृत्व में उपस्थित भिक्षु संघ ने त्रिशरण एवं पंचशील का पाठ, फिर भदंत आनंद जी के चित्र पर माल्यार्पण से हुई।
कार्यक्रम में आये हुए अतिथियों का स्वागत करते हुए केंद्र के प्रभारी निदेशक डॉ. सुरजीत कुमार सिंह ने कहा कि हम भगवान बुद्ध की मूल देशना को समझने का प्रयास करें, उन्होंने अपना पूरा जीवन समस्त प्राणियों के कल्याण के लिए लगा दिया था, उन्होंने अपने पहले उपदेश में मानव को दुःख से दूर रहने हेतु उपाय के रूप चार आर्य सत्यों को बताया था, हमें इनके प्रति जागरूकता रखते हुए अपने सामर्थ्यानुसार संसार के समस्त प्राणियों के प्रति मैत्री भावना का विकास करना चाहिए, हम सभी के मंगल की कामना करें, चाहें वह जल चर हों, नभ चर हों, थल चर हों, चाहें वह को वनस्पति ही क्यों न हों, हम सबके संरक्षण की बात करें, उनके कल्याण की भावना का प्रसार करें, किसी को कोई दुःख न दें, यही बौद्ध जीवन पद्धति है, यही बौद्ध जीवन का मार्ग है. तब सही अर्थों में हमारे द्वारा भदंत जी के लिए हमारी सच्ची आदरांजलि होगी।
कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में आये हुए वरिष्ठ कवि आचार्य सूर्यकांत भगत ने भदंत जी के जीवनवृत्त पर प्रकाश डालते हुए कहा कि उनका जीवन बुद्ध धम्म के लिए समर्पित रहा। भदंत जी सारनाथ में रह कर धर्मदूत पत्रिका का संपादन किये, नागपुर में दीक्षाभूमि पत्रिका के संपादन का भी कार्य देखा। वर्धा में वह राष्ट्रभाषा प्रचार समिति के प्रधानमंत्री भी रहे, उनके वर्धा प्रवास के दौरान मुझे उनका सानिध्य प्राप्त हुआ, मैंने उनके लिए गौरव गीत लिखे और गए बौद्ध धम्म के प्रति तत्वज्ञान मुझे उनसे ही प्राप्त हुए। भदंत जी की अब तक कुल 80 किताबें प्रकाशित हुई, उन किताबों की प्रूफ रीडिंग करने का सौभाग्य मुझे प्राप्त रहा। आचार्य सूर्यकांत भगत ने अपने लिखे गए गीत “बुद्धभूमि के नभ पर विपदा के बादल छाए, धम्मयान को आगे बढ़ने आनंद जी आगे आये” को गाकर भी सुनाया। उसके बाद विश्वविद्यालय के जनसंपर्क अधिकारी बी. एस. मिरगे ने कहा कि भदंत जी का वर्धा से जुडाव रहा है, पालि भाषा एवं बुद्ध धम्म के प्रति उनका कार्य अतुलनीय रहा है। डॉ. आंबेडकर द्वारा लिखित ग्रंथ ‘द बुद्धा एंड हिज धम्म’ का हिंदी अनुवाद कर आमजन के लिए बुद्ध धम्म पर एक उपयोगी ग्रन्थ उन्होंने दिया। 
कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में प्रख्यात अम्बेडकरी चिंतक एवं केंद्र के पूर्व संस्थापक निदेशक प्रो. एम. एल. कासारे ने अपने सारगर्भित वक्तव्य में कहा कि एक बार एक पत्रकार ने भदंत जी से पूछा कि आपके जीवन के क्या उद्देश्य हैं तो उन्होंने कहा कि मेरे जीवन के दो ही उद्देश्य हैं, एक हिंदी का प्रचार और दूसरा बौद्ध धर्म का प्रचार। उन्होने बुद्ध और उनका धम्म, बौद्ध धर्म का सार एवं पालि साहित्य के कई ग्रन्थों का अनुवाद किया। 31 दिनों मे पालि, भिक्षु के पत्र, यदि बाबा न होते इत्यादि पुस्तकों का लेखन भी किया। यदि हमे भदंत जी को समझना है तो उनकी किताबों को हमें पढ़ना होगा। उन्होंने अपनी बात को रखते हुए आगे कहा कि मैंने भदंत जी को कभी क्रोध करते हुए नहीं देखा, बच्चों के प्रति उनका प्रेम अगाध था। उन्हें देखकर मैंने समझा अकले प्रज्ञा से काम नहीं चलता, दुखी जनों को देखकर जो करुणा की भावना रखता है, वही बुद्ध शासन का सच्चा अनुयायी होता है। उन्होंने कहा कि धम्म ही सत्य है, सत्य ही धम्म है और यह गहन है, महासागर के समान है, आप सभी मेहनत के साथ धम्म का अध्ययन करें यही भदंत जी के प्रति आपकी सच्ची श्रध्दान्जलि होगी। 
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए हिंदी विभाग के अध्यक्ष एवं विश्वविद्यालय के कार्यकारी कुलसचिव प्रो. कृष्ण कुमार सिंह ने आज हम लोग उत्तर आधुनिकता के दौर से गुजर रहे है, जहाँ स्मृतिहीनता सबसे बड़ी समस्या है, ऐसे समय में भदंत कौसल्यायन जी को स्मरण करने के लिए हम यहाँ उपस्थित हैं, यह हर्ष का विषय है। इसके लिए केंद्र के प्रभारी डॉ. सुरजीत कुमार सिंह बधाई के पात्र हैं। भदंत कौसल्यायन जी ने हिंदी की विचार परंपरा को समृद्ध करने का कार्य किया, जिसके लिए हम उनके ऋणी हैं, भदंत कौसल्यायन जी का जीवन एक सन्देश है, महापंडित राहुल सांकृत्यायन, भदंत आनंद कौसल्यायन एवं आचार्य धर्मानंद कोसंबी के बौद्ध धर्म के विकास के प्रति किये गए योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता। वर्धा के लिए यह गौरव की बात है कि यहाँ भदंत आनंद कौसल्यायन एवं आचार्य धर्मानंद कोसंबी ने प्रवास किया। अब तक के ज्ञात इतिहास में यदि किसी महानतम व्यक्ति का नाम लिया जाये तो बुद्ध के सिवा कोई नहीं हो सकता, जिनके धम्म के मूल में करुणा, मुदिता एवं मैत्री है। हमे यदि बेहतर भविष्य का निर्माण करना है तो हमे बुद्ध धम्म का मार्ग अपनाना होगा एवं दुःख विमुक्ति में लिए अपनी तृष्णाओं पर नियंत्रण करना होगा।
कार्यक्रम का सफल एवं सुंदर संचालन केंद्र के सहायक प्रोफेसर डॉ. कृष्ण चंद पांडेय एवं धन्यवाद् ज्ञापन डॉ. शुभांगी शंभरकर ने करते हुए भदंत आनंद कौसल्यायन जी के जीवन के कई संस्मरण सुनाते हुए उनको याद किया। कार्यक्रम में रामभाऊ उमरे जी ने एक गीत सुनाया, दिनेश पटेल, रजनीश अंबेडकर, अमन ताक्सांदे, सुभाष कांबले, अनिकेत गायकवाड़, राजदीप राठौर, भंते इंद्रश्री, भंते आलोक, भंते मुदिता बोधि, अर्चना पाटिल, भाग्यश्री रामटेके, जीतेन्द्र कुमार, राहुल कुमार, नरेन्द्र, रामजी राव, राजेंद्र कुमार यादव, धम्मरतन, नीतू आनंद, मनोज कुमार, संजय कुमार, ओमप्रकाश बौद्ध व अन्य उपस्थित थे।