Sunday, March 20, 2011

Dharmanand Kosambi

यह ३४८ पेज का प्रसिद्ध ग्रन्थ मराठी भाषा में १९१४ में पालि भाषा एवं साहित्य व बौद्ध धर्म और दर्शन के विश्व प्रसिद्ध विद्वान धर्मानंद कोशाम्बी ने लिखा था. इसमें भगवान् बुद्ध का जीवनचरित्र पालि त्रिपिटक के मूल सुत्तों के आधार पर शोधपूर्ण ढंग से लिखा गया है.
by -Dr.Surjeet Kumar Singh
Assistant Professor
Dr.Bhadant Anand Kausalyayan Center For Buddhist Studies
Mahatma Gandhi International Hindi University
Wardha.442001

Tuesday, March 8, 2011

Status and Role of Women in Buddhism बौद्ध धर्म में महिलाओं का प्रवेश और भिक्षुणी संघ की स्थापना

ABSTRACT
-Dr.Surjeet Kumar Singh
Assistant Professor
Dr.Bhadant Anand Kauslyayan Centre for Buddhist Studies
Mahatma Gandhi International Hindi University
Wardha-442001.
बौद्ध धर्म में महिलाओं के प्रवेश और भिक्षुणी संघ की स्थापना को लेकर कुछ विद्वान सवाल उठाते हैं कि भगवान बुद्ध ने प्रथम बार महिलाओं को संघ में प्रवेश देने से मना कर दिया था. फिर काफी बाद में आनंद के अनुरोध करने पर बुद्ध महिलाओ को संघ में लेने के लिये सहमत हुये. इस पर भी उन्होंने आनंद से कहा कि यह संघ केवल ५०० साल ही स्थिर रहेगा. साथ ही भगवान् बुद्ध ने आठ गुरु धम्मा का पालन भिक्षुणियों के लिए अनिवार्य कर दिया. इस तरह के प्रश्न विद्वान उठाते रहे हैं. जबकि अनेक विद्वान इस बात से सहमत नहीं हैं. उनका मानना है कि भगवान् बुद्ध जैसा व्यक्ति इस तरह के असंगत और अव्यवहारिक नियमों नहीं बना सकते. यह बहुत बाद में भिक्षुओं के द्वारा जोड़ें गए क्षेपक हैं..
जब भी हम भिक्षुणी संघ में महिलाओं के प्रवेश की बात करेंगे तब इस तरह के आरोप लगाना गलत होगा, क्योंकि संसार के सभी धर्म प्रवर्तकों में भगवान बुद्ध ऐसे पहले व्यक्ति हैं जिन्होंने अपने धर्म और संघ के दरवाज़े महिलाओं के लिए खोले तथा उन्होंने महिलाओं को पुरुषों के बराबर स्थान दिया. इसी बात का परिणाम है कि ' थेरीगाथा ' नामक ग्रन्थ भिक्षुणियों की आत्मकथात्मक कहानी को व्यक्त करता है जो कि ' पालि त्रिपिटक ' में बुद्धवचन के रूप में समाहित है. ' थेरीगाथा ' महिलाओं की स्वयं की कहानी कहता है. यह नारी-मुक्ति और उसके आंदोलन का एक पहला और बेमिसाल दस्तावेज़ है.
बुद्धकालीन भारत में जहां जात-पांत,छुआछूत और वर्ण-व्यवस्था का बोलबाला था. उस समय महिलाओं की स्थिति और भी दयनीय थी.ऐसे में भगवान् बुद्ध ने सबसे पहले महिलाओं को पुरुषों के बराबर स्थान देने की बात को जोरदार ढंग से प्रस्तुत किया.बुद्ध जैसे व्यक्ति, जिनका पूरा जीवन सामाजिक परिवर्तन और सामाजिक न्याय की लड़ाई में बीता, ऐसा कैसे हो सकता है कि जो महामानव संसार में दुःख को दूर करने के लिए अपना राज-पाट और घर-परिवार को छोड़कर निकला तब वह सम्बोधि के बाद समाज की आधी आबादी को उपेक्षित रखता. जहां उनकी करुणा-दृष्टि संसार के समस्त प्राणियों, पशु-पक्षियों और पेड़-पौधों के लिए थी वहाँ ऐसा कैसा संभव है कि बुद्ध महिलाओं के बारे में इस तरह का मंतव्य रखें.