श्रमण राजकुमार सिद्धार्थ से सम्यक सम्बुद्ध बने भगवान् बुद्ध ने ऐसे समय में सामाजिक क्रांति का सूत्रपात किया जब समाज में चारों ओर शोषण का बोलबाला था.उस समय समाज के ए़क बहुत बड़े वर्ग को वैदि़कधर्म ने पशुओं से बदत्तर जीवन जीने को मजबूर किया,उनको वैदि़क धार्मिक कर्मकाण्डों-यज्ञ-पशुबलि-अंधविश्वासों-जादूटोनों-तंत्रमंत्र-झाड़फूंक-आत्मा-परमात्मा आदि से मुक्त कराया.बुद्ध ने लोगों को न तो स्वर्ग का लालच दिया और न ही नरक की धमकी.बल्कि उन्होंने लोगों को बताया की वे तो केवल मार्गदर्शक हैं,मोक्षदाता नहीं.उन्होंने कहा की मनुष्य अपना स्वामी खुद है उसे पारलौकिक सत्ता को खुश करने की जगह स्वंय आत्मनिर्भर होना चाहिए.
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