Sunday, July 13, 2014

डॉ. भदन्त आनंद कौसल्यायन

चेतना निर्माण ही लक्ष्य
जयंती तुलसा डोंगरे
आधुनिक काल में ऐसे व्यक्तित्व भारत में हुए हैं, जिन्होंने न केवल भारत में बौद्ध धम्म के पुनर्जागरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, बल्कि देश-विदेश के बौद्ध समाज को भी एक मंच पर आने के लिएमार्गदर्शन दिया. वैसे ही व्यक्ति का नाम है- डॉ. भदन्त आनंद कौसल्यायन. उनका जन्म 5 जनवरी 1905 को सुघना गांव, जिला चंडीगढ., पंजाब प्रांत में हुआ था. उनके बचपन का नाम हरिनाम दास था. उन्होंने खत्री जाति में जन्म लिया. लेकिन वे एक बौद्ध भिक्खु के रूप में जिए. वे अखिल भारतीय बौद्ध भिक्खु संघ के अध्यक्ष थे और प्रशिक्षण संस्थान नागपुर के संस्थापक अध्यक्ष थे. महास्थाविर लुनुपोकुने धम्मानंद के मार्गदर्शन में उन्होंने 1928 में श्रीलंका में बौद्ध धम्म की दीक्षा ली. डॉ. कौसल्यायन ने राष्ट्रभाषा हिन्दी को समृद्ध बनाने में योगदान दिया. इसके लिए हिन्दी विश्‍वविद्यालय प्रयाग ने उन्हें 'साहित्य वाचस्पति' की उपाधि से सम्मानित किया. इसी प्रकार नालंदा महाविहार की ओर से पाली और बौद्धधम्म की सेवा के लिए उन्हें 'विद्या वीरधि' की उपाधि से अलंकृत किया. वे हिन्दी के साहित्यकार भी थे. उनके हिन्दी साहित्य सम्मेलन, राष्ट्रभाषा प्रचार समिति विदर्भ साहित्य सम्मेलन से घनिष्ठ संबंध रहे. वे विदर्भ हिन्दी साहित्य सम्मेलन की कार्यकारिणी के सदस्य थे. वे कुशल वक्ता और हिन्दी के शैलीकार थे. उनके संस्मरण और अन्य निबंध आज भी साहित्य प्रेमियों द्वारा आदर के साथ पढे. जाते हैं. उन्होंने धार्मिक, सामाजिक और शैक्षणिक विषयों पर 100 से अधिक किताबें लिखीं. उनमें से अधिकांश हिन्दी में हैं. अन्य किताबें अंग्रेजी, पाली सिंहली और पंजाबी में हैं. वे भगतसिंह के साथ भी रहे. डॉ. भदन्त आनंद कौसल्यायन नागपुर विश्‍वविद्यालय (नागपुर विद्यापीठ) की सीनेट के सदस्य भी रहे. श्रीलंका में 1959 से 1968 तक वे हिन्दी विभाग के अध्यक्ष भी रहे. उन्होंने देश-विदेश की काफी यात्राएं की है. वे हमेशा घूमते ही रहते थे. जब वे श्रीलंका से भारत में नागपुर में दीक्षा भूमि पर कुछ समय तक रहे. बाद में वे नागपुर के समीप कामठी रोड स्थित बुद्ध भूमि में 1983 से बस गए. भारत को एक तरह से स्थायी रूप से कर्मभूमि बना लिया था. वे राहुल सांकृत्यायन से प्रभावित थे. उनके बारे में प्रसिद्ध हिन्दी लेखक कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर ने अपनी किताब 'क्षण बोले क्षण मुसकाए' को भेंट स्वरुप प्रदान करते हुए उस पर लिखा था कि, मान्य श्री कौसल्यायनजी को सादर, जिनका क्षण सदा बोलता रहा और कण मुस्कराता रहा. भदन्तजी की वाणी और कलम में बड.ी ताकत थी. वे शब्दों के धनी थे. लेकिन जीवन में उन्होंने अपनी वाणी और कलम से धन बटोरने का काम नहीं किया. जो पैसा उनके पास आता था, वे उसको दूसरों पर खर्च कर देते थे. वे कहते थे कि 'मैं तो पोस्टमैन का काम करता हूं. जो पैसा आ जाता है, उसको दूसरों में बांट देता हूं. बौद्ध भिक्खु के रूप में जीवन के अनुभवों का तत्वज्ञान उनके पास था. भदन्तजी एक अच्छे कहानीकार भी थे. बौद्ध साहित्य, इतिहास, संस्कृति से सम्बंधित लेखन के साथ कहानियां लिखने में उनकी विशेष रुचि थी. धर्म परिवर्तन उनकी एक सशक्त कहानी है. वे पंजाबी, हिंदी और उर्दू के भी विद्वान थे. डॉ. बाबासाहब आंबेडकर द्वारा अंग्रेजी में लिखी गई पुस्तक 'द बुद्धा एंड हिज धम्मा' का हिन्दी में 'भगवान बुद्ध और उनका धर्म' नाम से अनुवाद किया. बौद्ध प्रशिक्षण संस्थान के साथ उन्होंने'राहुल बालसदन' की स्थापना की.वहां अनाथ बच्चों को उन्होंने सहारा दिया. जिसे वे आगे चलकर अच्छे नागरिक बना सकें. इस संस्था में सभी जाति, धर्म और पंथ के बच्चे थे. आज भी यह संस्था कार्यरत है. उनके योगदानों से प्रेरणा मिलती है, जो अविस्मरणीय है.

No comments:

Post a Comment