Sunday, October 12, 2014

मलाला युसुफजई के बहाने

मलाला के बहाने गुमनामी में काम कर रहीं और दमन व शोषण का शिकार हुयी महिलाओं की बात.
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मित्रों, मैंने १० अक्टूबर, २०१४ को मलाला युसुफजई को नोबुल पुरस्कार मिलने के विरोध में क्या लिखा कि मेरे कुछ मित्र व शुभचिंतक मेरे पीछे पड़ गये हैं. (जिनमें फर्जीवाड़ा करने वाले फेमनिस्ट और सो-काल्ड कम्युनिस्ट पुरुष व महिलायें दोनों शामिल हैं, साथ ही अल्प एवं ना पढ़ने-लिखने वाले, पढ़ाई-लिखाई व फेम्निज्म का दिखवा करने वाले) वे मुझ पर मेरे मैसेज बाक्स में आकर ऐसा-ऐसा लिख रहें हैं कि मैं एक बच्ची का विरोध कर रहा हूँ और न जाने क्या-क्या अनाप-सनाप.?
ऐसे मौके पर मुझे यह कहना है कि सबसे पहली बात कि मैं मलाला का विरोध नहीं कर रहा हूँ. बल्कि मैं यह जानता हूँ कि उससे अधिक पूरे जीवन भर काम करने वाली महिलायें हमारे बीच मौजूद हैं और जिन्दा हैं. मैं पूछना चाहता हूँ कि मलाला ने ऐसा कौन सा काम किया है.? सिवाय B.B.C. और अन्य पश्चिमी देशों के लिए फर्जी नाम से खबरें लिखने के अलावा.? एक दिन स्कूल जाते समय तालिबानों ने गोली मार दी तो वह बच्चियों और महिलाओं की शिक्षा के लिए लड़ना हो गया.? ऐसे तो हमारे पूरे भारतीय उपमहादीप में स्कूल में और गाँव-मोहल्ले से रोज स्कूल जाते बच्चे गायब होते हैं, पढ़ाई के लिए खूब संघर्ष करते हैं, खूब पिटाई खाते हैं-स्कूल में मास्टर की और घर में माँ-बाप की. मेहनत मजदूरी करते हैं. ऐसी हज़ारों कहानियाँ हमारे बीच मौजूद हैं. किसी ने मलाल के बारे में बोला और कहा आपने हू..ले..ले.. की तरह मान लिया. मैं जानकारी दे दूं की नोबुल पुरस्कार ऐसे ही अपने आप घर बैठे नहीं मिलता है, उसके लिए नामिनेशन करवाना पड़ता है किसी दूसरे के द्वारा और खूब लाबिंग भी करनी पड़ती है! मलाला के भक्तगणों यह रहा लिंक: http://www.nobelprize.org/nomination/. इस बार की कहानी यह है.: Nominations for the 2014 Nobel Peace Prize:-The Norwegian Nobel Committee has received 278 candidates for the Nobel Peace Prize for 2014. 47 of these are organizations. 278 is the highest number of candidates ever. The previous record was 259 from 2013.
आज भारत में अपने अधिकारों के लिए संघर्षरत इन आदिवासी महिलाओं के बारे में विचार कीजिये तब शायद आपकी अंतरात्मा कुछ सोचने के लिए मजबूर हो जाए, कि यह महिलाएं मलाला की बाप और नानी-अम्मा हैं, काम और संघर्ष के मामले में. असम राइफल्स के दफ्तर के सामने नग्न हो कर प्रदर्शन करतीं उन आदिवासी महिलाओं का समूह याद है आपको.? मणिपुर की इरोम शर्मिला का दशकों से चला आ रहा अनशन याद है आपको.? छत्तीसगढ़ की आदिवासी शिक्षिका सोनी सोरी की कहानी पता है.? जिसके गुप्तांग में वहाँ की पुलिस ने पत्थर भर दिये थे और जेल मैं डाल दिया था, जब डॉक्टरों ने उसका चेकअप किया तो वह भी इस अमानवीयता पर शर्मसार हो गए थे और उन्होंने उसके गुप्तांग से निकाले वे पत्थर माननीय सुप्रीम कोर्ट को लिफाफे में बंद करके भेज दिये थे. असम की सड़कों पर मारपीट कर, कपड़े फाड़कर नंगी करके दौड़ाई जाती वह आदिवासी लड़की याद है आपको.? झारखंड की दयामणि बारला याद हैं आपको? कि जब वह बोलती हैं और सड़क पर लोगों नेत्तृव करतीं हैं तो भारत के बड़े से बड़े औद्योगिक घराने कांपने लगते हैं और भारत की सरकार भी उनके सामने पानी मांगने लगती है.? उ.प्र. के बुन्देलखण्ड की पिछड़ी जाति के गड़रिया समुदाय की संपत पाल याद हैं आपको.? जो गुलाबी गैंग को नेत्तृत्व दे रहीं हैं और उनके सामने बड़े से बड़ा नेता व गुंडा चूहा बना नज़र आता है.
 
मित्रों, हमारे देश और दुनिया में हजारों ऐसी महिलाएं हैं जो बिना किस नाम और पुरस्कार के लालच के चुपचाप काम कर रहीं हैं. उनको नोबुल क्या है, यह पता ही नहीं है.? वे मलाला और उसके पिता की तरह फर्राटेदार ब्रिटिश स्टाइल में अंग्रेजी नहीं बोलतीं. उनको नोबुल पुरस्कार के लिए नामिनेट करने वाला कौन होगा...?सोचिए..? मैं मलाला और सम्पूर्ण नोबुल समिति निर्णायकों का पुरजोर विरोध व निषेध करता हूँ...और करता रहूंगा.....आपके कहने व लिखने से नहीं मानूंगा...........!!!
----आपका
डॉ. सुरजीत कुमार सिंह
प्रभारी निदेशक
डॉ. भदंत आनंद कौसल्यायन बौद्ध अध्ययन केंद्र,
महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय,
वर्धा.

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